हरिद्वार के नेताओं को भी अब याद आने लगी गंगा मैया और भगवान शिव!

धर्मनगरी में नगर निकाय चुनाव का माहौल गरमाया हुआ है। हर पार्टी के प्रत्याशी अपनी-अपनी जीत के लिए भगवान के दर पर माथा टेकते हुए और गंगा पूजा करते नजर आ रहे हैं, तो कुछ शिव मंदिरों में घंटा बजाकर आशीर्वाद ले रहे हैं। यह दृश्य बताता है कि चुनावी मौसम में उम्मीदवारों को अपनी धार्मिक आस्था और जनता के समर्थन की आवश्यकता महसूस होती है।

चुनाव के समय प्रत्याशी अपनी धार्मिक भावनाओं का प्रदर्शन करके यह बता रहे हैं कि वे जनता के साथ हैं। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या चुनाव जीतने के बाद ये उम्मीदवार अपनी धार्मिक आस्थाओं और जनता से किए गए वादों को याद रखेंगे? या फिर सत्ता के नशे में वे अपनी राजनीति की मोहमाया में फंस जाएंगे और जनता और भगवान को भूल जाएंगे?

इतिहास गवाह है कि कई बार चुनावी मौसम में किए गए वादे और धार्मिक प्रचार सिर्फ वोट हासिल करने के लिए होते हैं। चुनाव जीतने के बाद, सत्ता में आने के बाद कई नेता अपने वादों से मुकर जाते हैं और उनकी प्राथमिकताएं बदल जाती हैं। क्या इस बार हरिद्वार के उम्मीदवार अपनी राजनीतिक जिम्मेदारियों को निभाते हुए जनता के प्रति अपनी जवाबदेही को निभाएंगे? या वे सत्ता की कुर्सी पर बैठकर उन सभी वादों को भूल जाएंगे, जो उन्होंने चुनाव से पहले जनता और भगवान से किए थे?

इस चुनावी समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि कौन प्रत्याशी अपने किए गए वादों को निभाता है और कौन सिर्फ चुनावी नाटक के रूप में धार्मिक भावनाओं का सहारा लेकर सत्ता में आता है।

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