पार्षद पद के उम्मीदवार इन दिनों सोशल मीडिया और प्रचार माध्यमों का भरपूर इस्तेमाल कर रहे हैं। कुछ प्रत्याशी सोशल मीडिया पर सक्रिय लोगों को अपने घर बुलाकर प्रचार करने में व्यस्त हैं। वहीं, यह सवाल भी उठता है कि चुनाव जीतने के बाद यही प्रत्याशी जनता के फोन उठाएंगे या उनकी समस्याओं के समाधान के लिए समय निकालेंगे? या फिर आम बहाना होगा कि ‘पार्षद जी मीटिंग में व्यस्त हैं,’ या ‘किसी राजनीतिक कार्यक्रम में शामिल हैं।’
डोर-टू-डोर प्रचार और जनसंवाद में बड़े-बड़े वादे करने वाले प्रत्याशी क्या उन वादों को निभा पाएंगे? कुछ प्रत्याशी जनसभाओं के माध्यम से जनता को जलपान कराकर आकर्षित कर रहे हैं। परंतु सवाल यह है कि क्या ये जनप्रतिनिधि चुनाव जीतने के बाद वार्ड में कैम्प लगाकर जनता की समस्याएं सुनेंगे? पूर्व पार्षद जो अब दोबारा जनसभाओं में सक्रिय हैं, क्या उन्होंने अपने पिछले कार्यकाल में ऐसा किया है?
नए प्रत्याशियों का लालच भी किसी से कम नहीं। वोट पाने के लिए गिफ्ट बांटने वाले क्या भविष्य में जनता की मुश्किल हालातों में आर्थिक सहायता करेंगे?
जनता को चाहिए कि किसी भी प्रलोभन या लालच में न आएं। निष्पक्ष होकर ऐसे प्रत्याशी को चुनें जो वास्तव में वार्ड की समस्याओं का समाधान कर सके और अपनी जिम्मेदारी निभाए। जागरूकता से किया गया चुनाव ही क्षेत्र के विकास और जनता के हित में कारगर साबित होगा।
