अतिक्रमण के नाम पर मजदूर बस्तियों पर कार्रवाई का आरोप

देहरादून। राज्य के प्रमुख विपक्षी दलों और जन संगठनों ने शनिवार को एक संयुक्त प्रेस वार्ता कर सरकार और प्रशासन पर गंभीर आरोप लगाए। वक्ताओं ने कहा कि ‘अतिक्रमण हटाने’ के नाम पर चलाए जा रहे सर्वे केवल मज़दूर बस्तियों को निशाना बना रहे हैं, जबकि बड़े बिल्डरों, होटलों और सरकारी इमारतों पर कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है। वक्ताओं ने कहा कि कोर्ट के आदेशों का इस्तेमाल मज़दूरों को बेदखल करने के लिए किया जा रहा है। सूचियों में सिर्फ गरीबों और मज़दूरों के घरों को चिन्हित किया गया है, जबकि नदियों में मलबा डालकर बने बड़े फ्लैट, होटल और सरकारी भवनों का कहीं कोई ज़िक्र नहीं है। प्रेस वार्ता में बताया गया कि कई ऐसे घर जिन्हें चिन्हित किया गया है, वो 2016 से पहले के बने हैं, जिन पर 2018 के अधिनियम के तहत कार्रवाई नहीं की जा सकती। इसके बावजूद प्रशासन उन्हें जबरन हटाने पर आमादा है। वक्ताओं ने बताया कि इसी तरह 2024 में रिस्पना नदी क्षेत्र में प्रशासन ने 525 घरों को अवैध बताकर तोड़ने की कार्रवाई शुरू की थी। लेकिन दो महीने चले विरोध के बाद प्रशासन को मानना पड़ा कि उनमें से 430 से ज़्यादा मकान वैध थे और गलती से सूची में आ गए थे। विपक्षी दलों ने मुख्यमंत्री के उस आश्वासन को भी याद दिलाया जिसमें 17 जनवरी को कहा गया था कि मज़दूर बस्तियों को नहीं तोड़ा जाएगा। बावजूद इसके, अब एलिवेटेड रोड और फ्लड जोन घोषित कर मज़दूरों को बेघर किया जा रहा है। प्रवक्ताओं ने एलान किया कि अगले दो महीनों में शहर के अलग-अलग हिस्सों में जनसभाएं, जुलूस और बड़े आंदोलन चलाए जाएंगे। प्रेस वार्ता में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राष्ट्रीय परिषद सदस्य समर भंडारी, समाजवादी पार्टी के एच.पी. यादव, चेतना आंदोलन के शंकर गोपाल और सर्वोदय मंडल के हरबीर सिंह कुशवाहा शामिल हुए। कांग्रेस के प्रवक्ता और इंडिया गठबंधन के संयोजक शीशपाल सिंह बिष्ट स्वास्थ्य कारणों से उपस्थित नहीं हो सके, लेकिन उन्होंने लिखित बयान के माध्यम से सरकार की नीतियों को दोगला करार देते हुए जन संघर्ष में समर्थन देने की बात कही।

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