देहरादून। उत्तराखंड में जड़ी-बूटी आधारित हर्बल और एरोमा टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए प्रदेश सरकार ने कमर कस ली है। सोमवार को सचिवालय स्थित सभागार में मुख्य सचिव आनंद बर्धन की अध्यक्षता में गैर-प्रकाश्ठ वन उपज और हर्बल एवं एरोमा टूरिज्म प्रोजेक्ट को लेकर एक अहम समीक्षा बैठक आयोजित की गई।
मुख्य सचिव ने बैठक के दौरान वन विभाग से अब तक की गई कार्यवाही की जानकारी ली और जरूरी दिशा-निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि प्रदेश में जड़ी-बूटियों के संरक्षण और विकास को लेकर स्थानीय समुदायों और वन पंचायतों की भूमिका अहम होनी चाहिए। इस दिशा में इको-टूरिज्म, मूल्य संवर्धन और जड़ी-बूटी रोपण जैसे कार्यों में इनकी भागीदारी सुनिश्चित की जाए।
मुख्य सचिव ने जोर देते हुए कहा कि इस प्रोजेक्ट के माध्यम से आजीविका सृजन, कौशल विकास और स्थानीय स्तर पर आर्थिक सुधार किए जाएं। उन्होंने कहा कि क्लस्टर लेवल फेडरेशन के समन्वय से जड़ी-बूटी उत्पादन से जुड़े प्रोजेक्ट को लागू किया जाए और जिन वन पंचायतों की पहले ही पहचान की जा चुकी है, वहां तेजी से काम शुरू किया जाए।
वन विभाग के अधिकारियों ने बताया कि गैर-प्रकाश्ठ वन उपज के विकास और हर्बल एवं एरोमा टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए यह प्रोजेक्ट 10 वर्षों के लिए बनाया गया है। इसका पहला चरण 2024 से 2029 तक और दूसरा चरण 2028 से 2033 तक चलेगा। इस ambitious योजना की कुल लागत 628 करोड़ रुपये है और यह हरिद्वार और उधम सिंह नगर को छोड़कर राज्य के 11 जनपदों में लागू की जा रही है।
प्रोजेक्ट के अंतर्गत 5000 वन पंचायतों को लाभ मिलेगा। इसमें 5000 हेक्टेयर वन पंचायत भूमि और 5000 हेक्टेयर निजी भूमि पर जड़ी-बूटी का वनीकरण किया जाएगा। अधिकारियों के अनुसार, इस योजना से न केवल पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि ग्रामीणों को आर्थिक रूप से भी सशक्त किया जा सकेगा।