हरिद्वार। मनसा देवी मंदिर में हाल ही में हुई भगदड़ की घटना ने धार्मिक स्थलों की व्यवस्थाओं और सुरक्षा उपायों की पोल खोलकर रख दी है। करंट फैलने की अफवाह के बाद मची अफरा-तफरी मे नौ श्रद्धालुओं की मौत हो गई और 30 से अधिक लोग घायल हो गए। यह हादसा सिर्फ एक अफवाह का नतीजा नहीं था, बल्कि प्रशासन की लापरवाही, अत्यधिक भीड़, संकरे और अतिक्रमण से भरे रास्ते, निकासी मार्गों की कमी और अव्यवस्थित प्रबंधन की श्रृंखला थी। जिस स्थान पर यह घटना हुई, वह मात्र 10 से 12 फीट चौड़ा रास्ता था, जहां अवैध रूप से सैकड़ों अस्थायी दुकानें लगाई गई थीं, जिससे आपातकाल में निकलना लगभग असंभव हो गया था। उत्तराखंड सरकार को आस्था और पर्यटन के नाम पर करोड़ों रुपये की आय होती है, लेकिन श्रद्धालुओं की सुरक्षा के लिए पुख्ता इंतज़ाम अब भी नदारद हैं। हरिद्वार को जहां धर्मनगरी और उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है, वहां वैष्णो देवी जैसे पुख्ता इंतज़ाम क्यों नहीं हो सकते, यह एक बड़ा सवाल है।
यदि दर्शन को स्लॉट या टोकन आधारित प्रणाली से जोड़ा जाए, जिसमें श्रद्धालुओं को मोबाइल ऐप या QR कोड के ज़रिए समयानुसार प्रवेश दिया जाए, तो भीड़ को नियंत्रित किया जा सकता है। हर प्रवेश और निकास द्वार पर CCTV कैमरे लगाए जाने चाहिए, जिन्हें कंट्रोल रूम से मॉनिटर किया जाए। साथ ही, लाउडस्पीकर और अनाउंसमेंट सिस्टम के जरिए आपात स्थिति में तुरंत सूचना दी जा सके, यह अनिवार्य है। डिजिटल डिस्प्ले बोर्ड श्रद्धालुओं को अनुमानित प्रतीक्षा समय, दिशा-निर्देश और भीड़ की स्थिति की जानकारी देने में मददगार हो सकते हैं। प्रत्येक श्रद्धालु का वेरिफिकेशन ज़रूरी होना चाहिए ताकि मंदिर परिसरों में अनुमत संख्या से अधिक लोग न जा सकें।
मंदिर समिति को चाहिए कि प्रसाद वितरण, जल और भोजन जैसी सेवाएं केवल समिति के माध्यम से ही संचालित हों। मंदिर मार्गों से अतिक्रमण पूरी तरह हटाकर रास्तों को चौड़ा और व्यवस्थित किया जाए। अफवाहों पर काबू पाने के लिए सूचना तंत्र को मज़बूत करना होगा और पुलिस बल की तैनाती में भी वृद्धि आवश्यक है। यह समय है कि सरकार, मंदिर प्रबंधन और आमजन सभी मिलकर व्यवस्था को सुधारें ताकि आस्था के केंद्र कभी भी जीवन के लिए खतरा न बनें। श्रद्धा को व्यवस्था की ज़रूरत है, नहीं तो ऐसी त्रासदियां दोहराई जाती रहेंगी।