देहरादून। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान, देहरादून के आश्रम सभागार में रविवारीय साप्ताहिक सत्संग-प्रवचनों एवं मधुर भजन-संर्कीतन के कार्यक्रम में आज शास्त्रोक्त इस महान श्लोक को सम्पूर्णता के साथ विवेचित किया गया- गुर्राे ब्रह्मा गुर्राे विष्णु गुर्राे देवो महेश्वरः, गुर्राे साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरूवे नमः। सर्वप्रथम मनभावन भजनों के द्वारा संगत को भाव-विभोर करते हुए कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ। 1. सेवा को तेरी पाकर गुरूवर……, 2. उठ जाग मुसाफ़िर भोर भई…. 3. प्रभु मिल जाएंगे, प्रेम की अगन हो, भक्ति का धन हो, मन में लगन हो, तो प्रभु मिल जाएंगे…… 4. यार मेरे दिलदार मेरे….. 5. एैसे तेरे बगैर जिए जा रहे हैं हम, जैसे कि कोई गुनाह किए जा रहे हैं हम…… तथा 6. मुझे अपना दीवाना बना दे, तेरा केड़ा मोल लगदा…..इत्यादि भजन निहाल कर गए।
भजनों की सारगर्भित मिमांसा करते हुए मंच का संचालन सद्गुरू सर्वश्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी विदुषी अरूणिमा भारती जी के द्वारा किया गया। उन्होंने बताया कि जीवन में यदि ईश्वर की प्राप्ति की ओर अग्रसर न हुए तो फिर एैसे जीवन का लाभ ही क्या है? भक्ति की अनन्त आकाश की ऊँचाईयों को छूने के लिए ही तो मनुष्य का जीवन मिला है। एक पतंग ऊंची उड़ान भरती है यदि डोर किसी कुशल पतंगबाज के हाथों में है तो ठीक, अन्यथा! वह कब कट जाए? कब नीचे गिरकर नष्ट हो जाए, या फिर लूट ली जाए! क्या पता! इसलिए भक्ति रूपी डोर किसी पूरे और परम श्रेष्ठ एैसे सद्गुरू के सशक्त हाथों में दे दी जानी चाहिए जो कभी न तो पतंग को कटने ही देगा और न ही लुटने ही देगा। सद्गुरू की महिमा से समस्त धर्म-ग्रन्थ, सभी पावन शास्त्र भरे हुए हैं। कबीर दास जी के अनुसार- ‘सब धरती कागद करूं, लेखनि सब वनराय, सात समुन्द की मसि करूं, गुरू गुण लिखा न जाए। संसार की माया में भटके हुए मनुष्य को संवारने-सजाने-बनाने के लिए ही पूर्ण गुरू का अवतरण इस धराधाम पर हुआ करता है। गुरू अपना कृपाहस्त जीव के मस्तक पर रख उसे ईश्वर का तात्विक दर्शन करा उसकी परम शाश्वत् भक्ति का शुभारम्भ कर दिया करते हैं। मनुष्य अपने जीवन में अनेक प्रकार के स्वप्न देखता है, उन्हें पूरा करने के लिए अपने जीवन की अनमोल श्वांसों को स्वाहा कर देता है, लेकिन! जब स्वप्न टूटता है तो सामने जीवन का अंत नज़र आता हैै। महापुरूष जीव को मोह निशा (रात्रि) से जाग्रत करने का कार्य किया करते हैं।